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Thursday, July 8, 2010
ख़ूब तरक्की पा ली मैंने...
ये आज कल मेरी चाल में भी दिखता है...
झुके हुए मेरे काँधे तने हैं...
आँख खूंरेज हैं....
कदम जम जम के रौंदते हैं ज़मीं...
ये आज कल मेरी बातों में भी सुनाई देता है...
लफ्ज़ चुन चुन के काम लाता हूँ...
सोचने का ढोंग करता हूँ.......
सुन ने से तो कर ही ली तौबा मैंने...
ये आज कल मेरे दोस्त भी बताते हैं मुझे....
मुझको खौफ बहोत रहने लगा है....
मैं रात रात भर चीखता चिल्लाता हूँ...
कभी कभी तो बंद पलकों के तले...
रात बे - नींद गुज़र जाती है....
ये मुझको भी महसूस अब होने लगा है...
मुझको एहसास नहीं होता किसी के भी गम का....
उलझा हुआ तो हूँ , वजह मगर कुछ भी नहीं...
लम्हे फुर्सत के बड़े लम्बे उदास लगते हैं....
ये माँ के चेहरे से भी बयाँ हो ही गया...
के देर रात मेरा इंतज़ार करने पे.....
भड़क उठा मैं, ये देख पाया ही नहीं...
के अब तलक वो भी भूखी बैठी थी...
ख़ूब तरक्की पा ली मैंने....
अविनाश
ये आज कल मेरी चाल में भी दिखता है...
झुके हुए मेरे काँधे तने हैं...
आँख खूंरेज हैं....
कदम जम जम के रौंदते हैं ज़मीं...
ये आज कल मेरी बातों में भी सुनाई देता है...
लफ्ज़ चुन चुन के काम लाता हूँ...
सोचने का ढोंग करता हूँ.......
सुन ने से तो कर ही ली तौबा मैंने...
ये आज कल मेरे दोस्त भी बताते हैं मुझे....
मुझको खौफ बहोत रहने लगा है....
मैं रात रात भर चीखता चिल्लाता हूँ...
कभी कभी तो बंद पलकों के तले...
रात बे - नींद गुज़र जाती है....
ये मुझको भी महसूस अब होने लगा है...
मुझको एहसास नहीं होता किसी के भी गम का....
उलझा हुआ तो हूँ , वजह मगर कुछ भी नहीं...
लम्हे फुर्सत के बड़े लम्बे उदास लगते हैं....
ये माँ के चेहरे से भी बयाँ हो ही गया...
के देर रात मेरा इंतज़ार करने पे.....
भड़क उठा मैं, ये देख पाया ही नहीं...
के अब तलक वो भी भूखी बैठी थी...
ख़ूब तरक्की पा ली मैंने....
अविनाश
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