Followers

Labels

Tuesday, August 31, 2010

महफ़िल हुई तमाम

महफ़िल हुई तमाम सितारे सहर की ओर चले,
हम भी लडखडाते कदमो से , अपने घर की ओर चले...

एक तेरी ना-मौजूदगी , उस पे शब्-ए-गम के सितम, '
तो खुद से होकर बेखबर जाने किधर की ओर चले...

राहें हो मुश्किल तो अपना घर ही अच्छा लगता है...
डूबता सूरज देखकर, परिंदे शजर की ओर चले...

अविनाश....

साँसों को थाम रक्खा है कर कर के बहाने कितने.

साँसों को थाम रक्खा है कर कर के बहाने कितने...
तुम ना आये , आये गए ज़माने कितने....

दिल में तेरा ख़याल, आँखों में है सूरत तेरी..
तू ना हो तो, हैं मेरी ज़िन्दगी के म.आने कितने...

हर लब पे तेरा चर्चा, हर महफ़िल में तेरे किस्से...
जाने इस जहाँ में है तेरे चाहने वाले कितने...

अविनाश

फकत इतनी आरजू है, मैं अभी जिंदा रहूँ .

फकत इतनी आरजू है, मैं अभी जिंदा रहूँ ..
मुझको पाने को एक मुद्दत से मचल रहा है कोई..
एक गुनाह हो रहा है, और खबर होती नहीं...
खुदाया, तुझको अपने आप से बदल रहा है कोई...

तनहा होकर भी एहसास मेरे तनहा नहीं होते...
 इन अंधेरो में चराग बन के जल रहा है कोई..

हर कदम पे ये गुमां होता है, मेरे साथ चल रहा है कोई..
मेरे दर्द की तपन से अश्क बन के पिघल रहा है कोई...

अवि...

Sunday, August 29, 2010

कहीं ऐसा तो नहीं...तुझे मुझसे मुहब्बत तो नहीं..

कहीं ऐसा तो नहीं...
तुम्हे मुझसे मुहब्बत तो नहीं....

मैंने देखा है इन निगाहों ने...
उठती गिरती हुई पलकों का सहारा लेकर..
मुझसे कुछ कहने की नाकाम सी कोशिश की है..
हाले दिल बयाँ किया , कभी ख़ामोशी तो कभी मुझसे...
कुछ और देर ठहर जाने की गुज़ारिश की है...
लबों से कुछ न कहा तुमने लेकिन...
मैं सोचता हूँ निगाहों में हकीकत तो नहीं...
कहीं ऐसा तो नहीं, तुम्हे मुझसे मुहब्बत तो नहीं....

कांपते हाथो ने तेरे थामी कलम,
दिल को अपने , कागज़ पे यूँ  उतारा है,
लकीरें खींची फूल बनाएं, शेर लिक्खे हैं...
टेढ़ी मेढ़ी सी उन लकीरों में, तेरे शेरो में और फूलों में..
मेरा ही अक्स उभरता है ये लगता है...
तुने मेरे ही लिए ये कागज़ सभी सजाये है...
दामन में उलझी ऊँगलिया देखी तो ये महसूस किया...
तेरे हाथों को कहीं मेरे सहारे की जरूरत तो नहीं...

कहीं ऐसा तो नहीं..
तुझे मुझसे मुहब्बत तो नहीं....

अविनाश ....

Realization...

छत पर बैठा दूर फलक में देख रहा हूँ....
एक चाँद है, एक सितारा....
और हजारों मील की दूरी....

बिल्कुल जैसे कमरे के एक कोने में तुम
बिल्कुल जैसे कमरे के एक कोने में मैं...
बीच में पसरी रस्मो रिवाजों की मजबूरी...

अजब बात है, कोई जहाँ हो...
मुश्किलें मुहब्बत का साया ही है...

अविनाश...

Friday, August 13, 2010

मुख़्तसर सी बात थी, अरसा गुज़र गया...'
मैं बोल पाता इस से पहले वो जाने किधर गया....

सफ़र पूरे समंदर का तय किया लेकिन ...'
जजीरे को साहिल समझा, कश्ती से उतर गया...

आँखों में घुमते है, वाकये जाने कितने...
वो के जिसमे तू शामिल था, वो मंज़र किधर गया....

एक डोर के मानिंद थामे था तू मुझे...
तू जो गया तो मैं मोतियों के जैसे बिखर गया....

अविनाश...

किस्सा ख्वाबो का

ले के आँखों में फिरते थे ,
हम एक खजाना ख्वाबो का...
कुछ छूट गए , कुछ टूट गए....

कुछ तो बड़े आजीज हुए
बनके महबूबा साथ रहे...
फिर एक ज़रा सी बात हुई...
वो भी सारे रूठ गए....

कुछ ख्वाब अभी तक जिंदा है
लेकिन ये मरासम महंगा है..
वो साथ रहे तो साथ रहे...
पर नींद हमारी लूट गए...

एक ख्वाब बड़ा जुनूनी है
अब भी आँखों में पलता है...
उस ख्वाब को जो सहलाया तो...
सब्र के धागे टूट गए....


अविनाश