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Tuesday, July 28, 2009

तमन्ना.....

बड़ी तमन्ना है कोई शाम ऐसी भी तो हो...
तू सामने बैठी हो शमा जलती रहे...
निगाहें एक दूजे के दिलो तक पहुचे,
हर एक साँस पे कोई आरजू मचलती रहे...

फ़िर कुछ ऐसा हो अपने हाथों में ले के हाथ तेरा...
तुझसे मुहब्बत का में इज़हार करू,
नज़र झुका के तू अपनी रज़ा दे मुझको,,
तुझको बाहों में लू, और तुझको प्यार करू,

तेरी बाहों में आ के भूल जाऊं में,
ख़ुद को, जमाने को, अपने हर गम को...
ऐसा दिलकश हो समा, मुहब्बत की बात चलती रहे...
तू सामने बैठी हो, शम्मा जलती रहे...

तेरे उलझे गेसुओं को सुलझाऊं  कभी,
तेरी अदाओं  में ख़ुद कभी उलझ जाऊं ,
तेरी आँखों  में ख़ुद को तलाश  करू,
ये तलाश  तमाम  उम्र  चलती  रहे...
तू सामने बैठी हो... शम्मा जलती रहे...

अविनाश ....

Tuesday, May 26, 2009

चल में लौटा देता हूँ,

चल...
चल मैं तुझको लौटा देता हूँ.....
तेरी किताबे...
उधार के पैसे॥
एक शर्ट बैगनी रंग की...
एक शर्ट वो धारी वाली...
एक घड़ी...
एक लकड़ी की कलम , वो , जिसपे मेरा नाम गुदा है....
ऐसा कुछ सामान तो॥
तेरे पास भी होगा....
ऐसा कुछ सामान तो....
तू भी लौटा देगी...
लेकिन मैं कैसे लौटाउंगा वो एहसास, जो की सामानों के साथ जुड़ा है

Avinash

माँ ...फ़िर

मिट्टी के बर्तन में...
ठंडा ठंडा पानी माँ...
कच्ची केरी की चटनी॥
सौंधी दाल मखानी माँ....
तीखी धुप के टुकडो सी लगती है दुनिया सारी
नर्म हवाएं हलकी हलकी॥
कोई शाम सुहानी माँ...
दिन भर थक कर टूट चुका है॥
मेरे जिस्म का हर हिस्सा...
मै सो जाऊँ , मुझको सुना फ़िर...
लोरी गीत कहानी....माँ.....

अविनाश

मेरी ज़रूरत

मेरी जिन्दगी की जरुरत है छोटी
तेरे कांधे का तिल, तेरे हाथो की रोटी...
कोई आरजू भी मुकम्मिल न होती,
मुहब्बत न होती , जो तुम न होती...

क्यों साँस चलती, दिल क्यों धड़कता...
निगाहें यू ख्वाबो की फसलें क्यों बोती...

न महलों की रंगत न कोई दौलत॥
न सोना न चांदी न हिरा न मोती...

मेरी जिन्दगी की जरुरत है छोटी...
तेरे कांधे का तिल... तेरे हाथों की रोटी....

Avi.....

Thursday, May 7, 2009

अब्बा....

आंखों में पसरा सूनापन, तन्हाई की सूरत अब्बा ॥
दो पैरो पे चलती फिरती, एक खामोश मुहब्बत अब्बा॥

छोटा कद , लेकिन दिल से ऊंचे पूरे कद्दावर॥
रिश्तों की खातिर अपना सब कुछ देने की आदत अब्बा...
गर्मी के मौसम की जैसे कोई मस्त दुपहरी या ....
कड़ी धुप में घने पेड़ की छाया जैसी राहत अब्बा...

चूल्हे में जलती लकड़ी, दीवारों पे छत का साया...
अंधेरों को रोशन करती, दिए की लौ की जीनत अब्बा...

मेरे महलों की नीवों में उनके सारे सपने हैं,
मेरी मेहनत  मेरी कीमत इज्ज़त और इबादत अब्बा....
अवि....

Sunday, May 3, 2009

माँ...

ज़माने के फरेबों से बचा ले मुझको,
माँ, अपने आँचल में छुपा ले मुझको...

मंजिल तो हर कदम पे फिसलती चली गई...
हुए नसीब बस पैर के छाले मुझको....

एक ख्वाब की तमन्ना में छूट गया सब कुछ,
दे आवाज़... घर फ़िर से बुला ले मुझको...

कौन तेरी तरह बालों में फिराए ऊंगली,
कौन तेरी तरह बाहों में संभाले मुझको...

जाने कब का जागा हूँ, जाने कब का खोया हूँ...
ज़रा सुकून मिले ... गोदी में सुला ले मुझको....

अविनाश....

Thursday, April 30, 2009

तुम्हे याद तोह होगा...

तुम्हे याद तोः होगा...

एक रोज़ अकेली राहो पे...
एक फूल तुम्हे मैंने सौपा था ...
वो किसी किताब के पन्नो में...
अब भी महक रहा होगा...

तुम्हे याद तोः होगा...
एक रात तुम्हारे ख्वाबो में
कोई आ के चुपके से लौट गया...
तुम सोच सोच कर हार गई
वो कौन होगा...

तुम्हे याद तोः होगा...
एक रोज़ तुम्हारे होटों पे ...
मैंने अपने होंट रक्खे...
लब  खोले बिना सब कह डाला,
दिल ने तेरे सुना होगा....

तुम्हे याद तोः होगा....

अविनाश

तुम.....1

कभी ख्वाब हो तुम,
कभी हो हकीकत
कभी आरजू हो,
कभी हो जरूरत,
कभी एक साया,
कभी मेरे हम दम
कभी सारी खुशियाँ
कभी मेरा हर गम,
कभी जैसे सहरा
कभी जैसे दरिया...
कभी ना में हाँ हो,
कभी हाँ में ना हो ....
हो जो भी मगर एक हसीं दास्ताँ  हो...



तुम हो...
दिल फ़िर भी तुम्हे ढूँढता  है...


तुम हो,
दिल फ़िर भी तुम्हे ढूँढता  है...
अविनाश ...

खूब...

तुमने भी उलझाया खूब......
मर्ज़.ऐ.इश्क लगाया खूब...
हमको ख्वाब दिखाए खूब...
रातों को जगाया खूब...
दांव पेंच यु इश्क के सीखे...
पाया सिफर, गवाया खूब...
मेरे लब से आहें निकली,
उसके लब पे आया " खूब॥"
कैसे निकले इनसे बच कर...
यादो ने जाल बिछाया खूब...
अविनाश...

Wednesday, April 29, 2009

खामोशी ...

बे मतलब की बातों से तो खूब भली है खामोशी,
मैंने अपनी लिए, तुम्हारे बाद चुनी है खामोशी...

ना कहती, ना सुनती है बस साथ में चलती  जाती है....
मुझको बिल्कुल अपने साए सी  लगती है खामोशी॥

कितने किस्से  कितने शिकवे  कितनी बात बताती है॥
लेकिन जब भी आई  हो तुम, साथ रही है खामोशी...
आइना दिखलाया  मुझको और फ़िर ये अलफ़ाज़  कहे...
अच्छे  से पहचान लो इसको , यूँ  दिखती  है खामोशी...
जो बात जुबां कह  ना पाई , वो बात तुम्हे बतलाने को..
सीने में पिघली , आँखों  से निकली  है खामोशी ...

अविनाश...

कई दिनों से

कई दिनों से बिखरा पडा है घर सारा,
मैंने कोशिश भी की येः लेकिन संवर नही पाया,
मेरे ही जैसे इसको भी तेरी आदत सी है,
तेरे जाने के गम से येः भी उबर नही पाया...

मेइज़ पर बिखरे पड़े है कुछ कागज़,
कुछ है खाली, कुछ तेरे लिक्खे ख़त है...
खाली पुर्जो पे है तेरे आंसुओं का खारापन,
तेरे खतों में मेरे लिए मोहब्बत है...





आईने पे धूल जमी है, कभी कभी फ़िर भी...
मुझको इसमें तेरी सूरत दिखाई देती है,
हवा के साथ जब उड़ते है घूनगरु परदे के
तेरी पाज़एब की झंकार सुनाई देती है...






खिड़किया लगती ही
राह तकती निगाहों की तरह,

तुझको आगोश में लेने के लिए है बेताब,
घर का दरवाजा, मेरी खुली बाहो की तरह....



लहराती  सीढियां  याद दिलाती है अदा तेरी, बांकपन तेरा....
बिस्तर की सलवटों में नज़र आता है...
इठलाता हुआ, इतराता हुआ...
बदन तेरा.........



कई दिनों से बिखरा पडा है घर सारा...
मैं लेकिन इसको सजाऊंगा नही....
तेरी यादें ही जिंदगी का सहारा बस है...
तेरी यादों को कभी दिल से मिटाऊंगा  नही....

Avinash



Monday, April 27, 2009

Chittiyaa...

मेरे तुम्हारे प्यार की निशानी चिट्ठियाँ,
हाथ आई, गई रात कुछ, पुरानी चिट्ठियाँ,

कुछ गम में सराबोर, कुछ खुशियों में तर.ब्.तर
कुछ युही कुछ बेहद रूहानी चिट्ठियाँ
बिल्कुल तेरे ही जैसी है तेरी चिट्ठिया,
बे तरह सादा , कभी सयानी  चिट्ठियां

आंखों के सामने से यूँ लम्हे गुज़र रहे हैं
दोहरा रही हो जैसे हर कहानी चिट्ठियां

अविनाश...