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Thursday, July 8, 2010
आज फिर से वक़्त यूं ही ज़ाया हो गया.....
तुमको फुर्सत न मिली, मैं भी उलझा रहा हिसाबो में....
वो मुहब्बत के जिसकी तमन्ना थी ....
दफन हो के रह गई तेरी मेरी लिक्खी किताबो में...
ख़ुद के जैसा मैं हो पाया ही नहीं...
शख्सियत ग़ुम हो गई कहीं नकाबों में...
एक पहेली की तरह है ज़िन्दगी भी
कभी उलझी सवालों में, कभी रुसवा जवाबो में....
अजीब हाल है के होश नहीं रहता दिन भर
रात होते ही डूब जाता हूँ मैं जवाबो में......
अविनाश
तुमको फुर्सत न मिली, मैं भी उलझा रहा हिसाबो में....
वो मुहब्बत के जिसकी तमन्ना थी ....
दफन हो के रह गई तेरी मेरी लिक्खी किताबो में...
ख़ुद के जैसा मैं हो पाया ही नहीं...
शख्सियत ग़ुम हो गई कहीं नकाबों में...
एक पहेली की तरह है ज़िन्दगी भी
कभी उलझी सवालों में, कभी रुसवा जवाबो में....
अजीब हाल है के होश नहीं रहता दिन भर
रात होते ही डूब जाता हूँ मैं जवाबो में......
अविनाश
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