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Tuesday, May 26, 2009
चल...
चल मैं तुझको लौटा देता हूँ.....
तेरी किताबे...
उधार के पैसे॥
एक शर्ट बैगनी रंग की...
एक शर्ट वो धारी वाली...
एक घड़ी...
एक लकड़ी की कलम , वो , जिसपे मेरा नाम गुदा है....
ऐसा कुछ सामान तो॥
तेरे पास भी होगा....
ऐसा कुछ सामान तो....
तू भी लौटा देगी...
लेकिन मैं कैसे लौटाउंगा वो एहसास, जो की सामानों के साथ जुड़ा है
Avinash
चल मैं तुझको लौटा देता हूँ.....
तेरी किताबे...
उधार के पैसे॥
एक शर्ट बैगनी रंग की...
एक शर्ट वो धारी वाली...
एक घड़ी...
एक लकड़ी की कलम , वो , जिसपे मेरा नाम गुदा है....
ऐसा कुछ सामान तो॥
तेरे पास भी होगा....
ऐसा कुछ सामान तो....
तू भी लौटा देगी...
लेकिन मैं कैसे लौटाउंगा वो एहसास, जो की सामानों के साथ जुड़ा है
Avinash
मिट्टी के बर्तन में...
ठंडा ठंडा पानी माँ...
कच्ची केरी की चटनी॥
सौंधी दाल मखानी माँ....
तीखी धुप के टुकडो सी लगती है दुनिया सारी
नर्म हवाएं हलकी हलकी॥
कोई शाम सुहानी माँ...
दिन भर थक कर टूट चुका है॥
मेरे जिस्म का हर हिस्सा...
मै सो जाऊँ , मुझको सुना फ़िर...
लोरी गीत कहानी....माँ.....
अविनाश
ठंडा ठंडा पानी माँ...
कच्ची केरी की चटनी॥
सौंधी दाल मखानी माँ....
तीखी धुप के टुकडो सी लगती है दुनिया सारी
नर्म हवाएं हलकी हलकी॥
कोई शाम सुहानी माँ...
दिन भर थक कर टूट चुका है॥
मेरे जिस्म का हर हिस्सा...
मै सो जाऊँ , मुझको सुना फ़िर...
लोरी गीत कहानी....माँ.....
अविनाश
मेरी जिन्दगी की जरुरत है छोटी
तेरे कांधे का तिल, तेरे हाथो की रोटी...
कोई आरजू भी मुकम्मिल न होती,
मुहब्बत न होती , जो तुम न होती...
क्यों साँस चलती, दिल क्यों धड़कता...
निगाहें यू ख्वाबो की फसलें क्यों बोती...
न महलों की रंगत न कोई दौलत॥
न सोना न चांदी न हिरा न मोती...
मेरी जिन्दगी की जरुरत है छोटी...
तेरे कांधे का तिल... तेरे हाथों की रोटी....
Avi.....
तेरे कांधे का तिल, तेरे हाथो की रोटी...
कोई आरजू भी मुकम्मिल न होती,
मुहब्बत न होती , जो तुम न होती...
क्यों साँस चलती, दिल क्यों धड़कता...
निगाहें यू ख्वाबो की फसलें क्यों बोती...
न महलों की रंगत न कोई दौलत॥
न सोना न चांदी न हिरा न मोती...
मेरी जिन्दगी की जरुरत है छोटी...
तेरे कांधे का तिल... तेरे हाथों की रोटी....
Avi.....
Thursday, May 7, 2009
आंखों में पसरा सूनापन, तन्हाई की सूरत अब्बा ॥
दो पैरो पे चलती फिरती, एक खामोश मुहब्बत अब्बा॥
छोटा कद , लेकिन दिल से ऊंचे पूरे कद्दावर॥
रिश्तों की खातिर अपना सब कुछ देने की आदत अब्बा...
गर्मी के मौसम की जैसे कोई मस्त दुपहरी या ....
कड़ी धुप में घने पेड़ की छाया जैसी राहत अब्बा...
चूल्हे में जलती लकड़ी, दीवारों पे छत का साया...
अंधेरों को रोशन करती, दिए की लौ की जीनत अब्बा...
मेरे महलों की नीवों में उनके सारे सपने हैं,
मेरी मेहनत मेरी कीमत इज्ज़त और इबादत अब्बा....
अवि....
दो पैरो पे चलती फिरती, एक खामोश मुहब्बत अब्बा॥
छोटा कद , लेकिन दिल से ऊंचे पूरे कद्दावर॥
रिश्तों की खातिर अपना सब कुछ देने की आदत अब्बा...
गर्मी के मौसम की जैसे कोई मस्त दुपहरी या ....
कड़ी धुप में घने पेड़ की छाया जैसी राहत अब्बा...
चूल्हे में जलती लकड़ी, दीवारों पे छत का साया...
अंधेरों को रोशन करती, दिए की लौ की जीनत अब्बा...
मेरे महलों की नीवों में उनके सारे सपने हैं,
मेरी मेहनत मेरी कीमत इज्ज़त और इबादत अब्बा....
अवि....
Sunday, May 3, 2009
ज़माने के फरेबों से बचा ले मुझको,
माँ, अपने आँचल में छुपा ले मुझको...
मंजिल तो हर कदम पे फिसलती चली गई...
हुए नसीब बस पैर के छाले मुझको....
एक ख्वाब की तमन्ना में छूट गया सब कुछ,
दे आवाज़... घर फ़िर से बुला ले मुझको...
कौन तेरी तरह बालों में फिराए ऊंगली,
कौन तेरी तरह बाहों में संभाले मुझको...
जाने कब का जागा हूँ, जाने कब का खोया हूँ...
ज़रा सुकून मिले ... गोदी में सुला ले मुझको....
अविनाश....
माँ, अपने आँचल में छुपा ले मुझको...
मंजिल तो हर कदम पे फिसलती चली गई...
हुए नसीब बस पैर के छाले मुझको....
एक ख्वाब की तमन्ना में छूट गया सब कुछ,
दे आवाज़... घर फ़िर से बुला ले मुझको...
कौन तेरी तरह बालों में फिराए ऊंगली,
कौन तेरी तरह बाहों में संभाले मुझको...
जाने कब का जागा हूँ, जाने कब का खोया हूँ...
ज़रा सुकून मिले ... गोदी में सुला ले मुझको....
अविनाश....
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