Followers

Labels

Sunday, April 25, 2010

हकीकत

वो सिर्फ सर झुका के सुनता रहा सारे किस्से ...
जैसे के जानता ही नहीं इन्तहा गम की ...

उठी नज़र भी तो गोया ये कहा उसने ....
" तुमने मुहब्बत तो की , लेकिन कम की...."

हाथ कुछ और तो नहीं आया...
चंद ख्वाब हैं रूह में अटके हुए...
उभर आते है ज़ेहन पे कभी कभी ऐसे...
परिंदे हो सफ़र से भटके हुए....

उफ़ के मुश्किल है लौट आना उसका ...
और ना मुमकिन है भूल जाना उसे ...

ख़याल काफी हैं, लेकिन बयाँ नहीं होते ...
रफ़्तार रुक सी गयी है जैसे कलम की...

वो लफ्ज़ जो निगाहों से कहे गए सच हैं शायद....
" मैंने मुहब्बत तो की... लेकिन कम की..."
Avinash

0 comments: