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Sunday, April 25, 2010
एक दिन उसने तमन्ना ये की ....
छोड़ के साथ महबूब का , उड़े तनहा ....
रक्स बादलो पे करे
हवा पे लहराए
ऐसी परवाज़ भरे
जोर , जिसपे किसी का ना चले...
उसको देखा भी गया
हवाओं पे बल खाते हुए
साथ परिंदों के लहराते हुए
रक्स बादलो पे करते हुए
कभी गिरते कभी उभरते हुए
खूब परवाज़ थी लेकिन लम्बी न चली
कौन समझाए के पतंग के उड़ने के लिए
डोर का साथ भी ज़रूरी है....
अविनाश
छोड़ के साथ महबूब का , उड़े तनहा ....
रक्स बादलो पे करे
हवा पे लहराए
ऐसी परवाज़ भरे
जोर , जिसपे किसी का ना चले...
उसको देखा भी गया
हवाओं पे बल खाते हुए
साथ परिंदों के लहराते हुए
रक्स बादलो पे करते हुए
कभी गिरते कभी उभरते हुए
खूब परवाज़ थी लेकिन लम्बी न चली
कौन समझाए के पतंग के उड़ने के लिए
डोर का साथ भी ज़रूरी है....
अविनाश
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