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Tuesday, May 26, 2009

माँ ...फ़िर

मिट्टी के बर्तन में...
ठंडा ठंडा पानी माँ...
कच्ची केरी की चटनी॥
सौंधी दाल मखानी माँ....
तीखी धुप के टुकडो सी लगती है दुनिया सारी
नर्म हवाएं हलकी हलकी॥
कोई शाम सुहानी माँ...
दिन भर थक कर टूट चुका है॥
मेरे जिस्म का हर हिस्सा...
मै सो जाऊँ , मुझको सुना फ़िर...
लोरी गीत कहानी....माँ.....

अविनाश

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