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Sunday, May 3, 2009

माँ...

ज़माने के फरेबों से बचा ले मुझको,
माँ, अपने आँचल में छुपा ले मुझको...

मंजिल तो हर कदम पे फिसलती चली गई...
हुए नसीब बस पैर के छाले मुझको....

एक ख्वाब की तमन्ना में छूट गया सब कुछ,
दे आवाज़... घर फ़िर से बुला ले मुझको...

कौन तेरी तरह बालों में फिराए ऊंगली,
कौन तेरी तरह बाहों में संभाले मुझको...

जाने कब का जागा हूँ, जाने कब का खोया हूँ...
ज़रा सुकून मिले ... गोदी में सुला ले मुझको....

अविनाश....

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