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Wednesday, April 29, 2009
कई दिनों से बिखरा पडा है घर सारा,
मैंने कोशिश भी की येः लेकिन संवर नही पाया,
मेरे ही जैसे इसको भी तेरी आदत सी है,
तेरे जाने के गम से येः भी उबर नही पाया...
मेइज़ पर बिखरे पड़े है कुछ कागज़,
कुछ है खाली, कुछ तेरे लिक्खे ख़त है...
खाली पुर्जो पे है तेरे आंसुओं का खारापन,
तेरे खतों में मेरे लिए मोहब्बत है...
आईने पे धूल जमी है, कभी कभी फ़िर भी...
मुझको इसमें तेरी सूरत दिखाई देती है,
हवा के साथ जब उड़ते है घूनगरु परदे के
तेरी पाज़एब की झंकार सुनाई देती है...
खिड़किया लगती ही
राह तकती निगाहों की तरह,
तुझको आगोश में लेने के लिए है बेताब,
घर का दरवाजा, मेरी खुली बाहो की तरह....
लहराती सीढियां याद दिलाती है अदा तेरी, बांकपन तेरा....
बिस्तर की सलवटों में नज़र आता है...
इठलाता हुआ, इतराता हुआ...
बदन तेरा.........
कई दिनों से बिखरा पडा है घर सारा...
मैं लेकिन इसको सजाऊंगा नही....
तेरी यादें ही जिंदगी का सहारा बस है...
तेरी यादों को कभी दिल से मिटाऊंगा नही....
Avinash
मैंने कोशिश भी की येः लेकिन संवर नही पाया,
मेरे ही जैसे इसको भी तेरी आदत सी है,
तेरे जाने के गम से येः भी उबर नही पाया...
मेइज़ पर बिखरे पड़े है कुछ कागज़,
कुछ है खाली, कुछ तेरे लिक्खे ख़त है...
खाली पुर्जो पे है तेरे आंसुओं का खारापन,
तेरे खतों में मेरे लिए मोहब्बत है...
आईने पे धूल जमी है, कभी कभी फ़िर भी...
मुझको इसमें तेरी सूरत दिखाई देती है,
हवा के साथ जब उड़ते है घूनगरु परदे के
तेरी पाज़एब की झंकार सुनाई देती है...
खिड़किया लगती ही
राह तकती निगाहों की तरह,
तुझको आगोश में लेने के लिए है बेताब,
घर का दरवाजा, मेरी खुली बाहो की तरह....
लहराती सीढियां याद दिलाती है अदा तेरी, बांकपन तेरा....
बिस्तर की सलवटों में नज़र आता है...
इठलाता हुआ, इतराता हुआ...
बदन तेरा.........
कई दिनों से बिखरा पडा है घर सारा...
मैं लेकिन इसको सजाऊंगा नही....
तेरी यादें ही जिंदगी का सहारा बस है...
तेरी यादों को कभी दिल से मिटाऊंगा नही....
Avinash
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