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Friday, August 13, 2010

किस्सा ख्वाबो का

ले के आँखों में फिरते थे ,
हम एक खजाना ख्वाबो का...
कुछ छूट गए , कुछ टूट गए....

कुछ तो बड़े आजीज हुए
बनके महबूबा साथ रहे...
फिर एक ज़रा सी बात हुई...
वो भी सारे रूठ गए....

कुछ ख्वाब अभी तक जिंदा है
लेकिन ये मरासम महंगा है..
वो साथ रहे तो साथ रहे...
पर नींद हमारी लूट गए...

एक ख्वाब बड़ा जुनूनी है
अब भी आँखों में पलता है...
उस ख्वाब को जो सहलाया तो...
सब्र के धागे टूट गए....


अविनाश

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