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Friday, August 13, 2010

मुख़्तसर सी बात थी, अरसा गुज़र गया...'
मैं बोल पाता इस से पहले वो जाने किधर गया....

सफ़र पूरे समंदर का तय किया लेकिन ...'
जजीरे को साहिल समझा, कश्ती से उतर गया...

आँखों में घुमते है, वाकये जाने कितने...
वो के जिसमे तू शामिल था, वो मंज़र किधर गया....

एक डोर के मानिंद थामे था तू मुझे...
तू जो गया तो मैं मोतियों के जैसे बिखर गया....

अविनाश...

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